1. शत्रु का सबसे घातक हथियार होता है “उकसाना ” । शत्रु ऐसा प्रयास करता है की आपको उकसाया जाये जिससे आप को क्रोध आए। क्रोध में शक्ति और विवेक आधी हो जाती है और शत्रु आपकी कमजोरी का फायदा उठाता है। इसलिए शत्रु आपको उकसाने का प्रयास करे तो कछुए की भांति क्रोध को समेटकर अपने अंदर रख लो और अपनी पूरी तैयारी के साथ वार करो। इसलिए कभी भी शत्रु के उकसाने पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। लेकिन शत्रु को क्षमा भी नहीं करना चाहिए। क्षमा करने से शत्रु का मनोबल बढ़ता है।
2. किसी मूर्ख व्यक्ति के लिए किताबें उतनी ही उपयोगी हैं! जितना कि एक अंधे व्यक्ति के लिए आईना।
3. भले ही आप में बहुत से गुण हो। आपका व्यवहार अच्छा हो, आप दयावान हो। आप समाजसेवी हो या आप पैसे वाले हो। आपकी समाज में बड़ी इज्जत है। लेकिन आपके अंदर एक छोटा सा भी दोष होगा। तो वह आपका जीवन बर्बाद कर देगा।
4. वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है।
5. संस्कारी परिवार की कन्या यदि सुंदर ना हो तो भी उससे विवाह कर लेना चाहिए। विवाह के बाद स्त्री के गुण ही परिवार को आगे बढ़ाते है। संस्कारी कन्या के आचार विचार शुद्ध होते है। ऐसी स्त्री एक श्रेष्ठ परिवार बनाती है।
6. आग में आग नहीं डालनी चाहिए। अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।
7. जब कार्यों की अधिकता हो, तब उस कार्य को पहले करें, जिससे अधिक फल प्राप्त होता है।
8. बहुत से परिवारों में झगड़े होते है और ये होना भी आम बात है पर इस बात को कभी भी किसी बहार वाले को नहीं बताना चाहिए। चाणक्य नीति के अनुसार अगर आप बहार वाले को ये बातें बताते हैं तो ऐसा करने पर समाज में परिवार की प्रतिष्ठा कम होती है और साथ ही साथ परिवार का अहित चाहने वाले लोग हमारे आपसी झगड़े से लाभ उठाते है।
9. परिश्रम वह चाबी है, जो किस्मत का दरवाजा खोल देती है।
10. समझदार आदमी वही है जो कमाई और खर्चे के तालमेल को समझ सके। जो लोग आय से ज्यादा खर्च करते है, वो हमेशा परेशानियो में रहते है। इसलिए धन सम्बन्धी सुख पाने के लिए कभी भी आय से ज्यादा खर्च न करे।
11. जो लोग मिली हुई चीज को छोड़कर उस चीज के पीछे भागते है जिसके मिलने की कोई आशा ही न हो , ऐसे लोग मिली हुई चीज को भी खो देते है।
12. औरत को सदा गृह कार्य में लगे रहना चाहिए। इसलिए उसे गृहणी कहा गया है। वही औरत आदर और सत्कार के योग्य होती है, जो अपने घर में रहकर पति की सेवा करे। बच्चों का पालन पोषण करती है।
1. किसी सभा में कब क्या बोलना चाहिए, किससे प्रेम करना चाहिए तथा कहां पर कितना क्रोध करना चाहिए जो इन सब बातों को जानता है, उसे पण्डित अर्थात ज्ञानी व्यक्ति कहा जाता है।
2. घर से बाहर विदेश में रहने पर विद्या मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोगी के लिए दवा मित्र होती है तथा मृत्यु के बाद व्यक्ति का धर्म ही मित्र होता है।
3. जो महेनती है, वो गरीब नहीं हो सकते, हरदम भगवान को याद करने वालो को कभी भी पाप नहीं छू सकता, जो चुप और शांत रहे है वो झगड़ों में नहीं पड़ते, जागृत लोग निडर रहते है।
4. आखों से देखकर पैर रखना चाहिए, कपड़े से शुद्ध करके पानी पीना चाहिए, शास्त्र से शुद्ध करके वचन बोलने चाहिए और मन में विचार करके कार्य करना चाहिए।
5. मूर्ख व्यक्ति को दो पैरोंवाला पशु समझकर त्याग देना चाहिए, क्योंकि वह अपने शब्दों से शूल के समान उसी तरह भेदता रहता है, जैसे अदृश्य कांटा चुभ जाता है|
6. धन का नाश हो जाने पर, मन में दुखः होने पर, पत्नी के चाल – चलन का पता लगने पर, नीच व्यक्ति से कुछ घटिया बातें सुन लेने पर तथा स्वयं कहीं से अपमानित होने पर अपने मन की बातों को किसी को नहीं बताना चाहिए । यही समझदारी है।
7. जिसके घर में माता न हो और स्त्री क्लेश करने वाली हो , उसे वन में चले जाना चाहिए क्योंकि उसके लिए घर और वन दोनों समान ही हैं ।
8. दान से ही हाथों की सुन्दरता है, न कि कंगन पहनने से, शरीर स्नान से ही शुद्ध होता है न कि चन्दन का लेप लगाने से, तृप्ति मान से होता है, न कि भोजन से, मोक्ष ज्ञान से मिलता है, न कि श्रृंगार से ।
9. धर्म में यदि दया न हो तो उसे त्याग देना चाहिए । विद्याहीन गुरु को, क्रोधी पत्नी को तथा स्नेहहीन बान्धवों को भी त्याग देना चाहिए ।
10. जो व्यक्ति स्पष्ट , साफ , सीधी बात करता है उस व्यक्ति की वाणी तीव्र एवम कठोर होती जरूर है लेकिन ऐसा व्यक्ति किसी को धोखा नहीं देता।
1. यदि आप प्रयास करने के बाद भी असफल हो जाये, तो उस व्यक्ति से हर हाल में बेहतर होंगे जिसको बिना किसी प्रयास के सफलता मिल गई हो ।
2. जैसे हजारों गायों में भी बछड़ा अपनी माता को पहचान कर उसी के पास जाता है उसी प्रकार व्यक्ति जो भी कर्म करता है वह कर्म भी उसके पीछे पीछे चलता है अर्थात व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना अवश्य ही पड़ता है
3. भाग्य के सहारे रहने वालों का नाश हो जाता है ऐसा बताया गया है व्यक्ति को मुसीबत आने से पहले उससे बचने का हल सोच लेना चाहिए
4 बुद्धि के बिना ताकत भी बेकार है। जिसके पास ताकत है किन्तु बुद्धि नहीं, ऐसे लोग अपने से कमजोर इंसान से भी हार जाते है।
5 कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण है। जो साहस के साथ उनका सामना करते है, वे विजयी होते है।
6. बुराई इसलिए नहीं पनपती की बुरा करने वाले लोग बढ़ गए है, बल्कि इसलिए बढ़ती है की बुराई सहन करने वाले लोग बढ़ गए है।
7. यदि आप किसी अन्य व्यक्ति के लिए किसी को छोड़ देते हो तो इस बात पर हैरान मत होना, अगर वह व्यक्ति आपको किसी के लिए छोड़ दे।
8. जो लोग मौका पड़ने पर आपको याद करते है और उन्हें दोस्ती की याद केवल उसी समय आती है , जब वह मुसीबत में होते है। ऐसे लोगो से भी चाणक्य ने दूर रहने के लिए कहा है। ऐसे लोग जरूरत पड़ने पर आपके साथ होते है, और बाद में आपका साथ छोड़ देते है।
9. अपने कर्म पर विश्वाश रखिये राशियों पर नहीं राशि तो राम और रावण के भी एक ही थी लेकिन नियति ने उन्हें फल उनके कर्म के अनुसार दिया।
10. आमदनी पर्याप्त न होने पर खर्चो पर नियंत्रण रखिये और जानकारी पर्याप्त न हो तो शब्दों पर नियत्रण रखिये।
11. जिंदगी की रेस में जो लोग आपको दौड़कर नहीं हरा पाते वो आपको तोड़कर हराने की कोशिश करते है।
12. अगर किसी व्यक्ति के पास आवश्यकता से अधिक धन हो जाता है तो वह उससे जरूरत की चीजें खरीदने के बाद धन के दुरूपयोग के बारे में भी सोचने लगता है। उसको गलत आदतें पड़ जाती है। ऐसे धन को उन्होंने जहर के समान माना है। जो आपका भला करने की बजाए आपका बुरा करे।
1. रोग सांप और शत्रु इन्हे कभी घायल करके न छोड़े। रोग का पूरा उपचार नहीं हुआ तो वह फिर से प्रभावी होकर उभर सकता है। सांप को घायल छोड़ दिया तो वह और भी घातक हो सकता है। शत्रु अगर घायल होकर बच गया तो वह अंदर ही अंदर बदले की आग में जलता है। और फिर हमला कर सकता है। इसलिए शत्रु पर वर करो तो ऐसा की वह फिर उठ न सके।
2. यदि कोई सर्प जहरीला न भी हो तो भी उसे फुफकार मारना कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए इसी तरह यदि कोई व्यक्ति कमजोर भले ही हो उसे कभी अपनी कमजोरी का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।
3. अगर समझाने से लोग समझ जाते तो बांसुरी बजाने वाला कभी महाभारत होने नहीं देता।
4. अपनी सफलता का रोब माता – पिता को मत दिखाओ क्योंकि उन्होंने अपनी जिन्दगी हार कर आपको जिताया है।
5. जो शक्ति न होते हुए भी मन से हार नहीं मानता है, उसको दुनिया की कोई ताकत नहीं परास्त कर सकती।
6. इंसान असफल तब नहीं होता जब वो हार जाता है। असफल तब होता जब वो ये सोच ले की अब वो जीत नहीं सकता।
7. खुद को अगर जिंदा समझते हो तो गलत का विरोध करना सीखो, क्योंकि लहर के साथ लाशे बहा करती है तैराक नहीं।
8. उन लोगो को कभी न भूले जिन्होंने आपका साथ तब दिया जब आपके पास कोई नहीं था।
9. पानी की एक एक बूंद गिरने से घड़ा भर जाता है। इसी तरह धीरे धीरे अभ्यास करने से सब विद्याओं की प्रप्ति हो जाती है तथा थोड़ा – थोड़ा करके धन का संचय भी हो जाता है।
10. जो व्यक्ति किसी दूसरे की स्त्री को माता की भांति पराए धन को मिट्टी के ढेले की भांति और समस्त प्राणियों को अपनी आत्मा की भांति देखता वह समझता है वस्तुतः वही ठीक-ठाक देखने वाला होता है
1. जीवन में सफलता पाने के लिए एक श्रेष्ठ गुरु का होना बहुत जरूरी माना गया है। गुरु ही मनुष्य को सही और गलत में फर्क करना और जिम्मेदारियों का पालन करना सिखाता है जो व्यक्ति अपने गुरु और उनके द्वारा दी गई शिक्षा पर विश्वास नहीं रखता है। उसे जीवन में कई कठिनाइयो का सामना करना पड़ता है।
2. सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।
3. जिस आदमी से हमें काम लेना है , उनसे हमे वही बात करनी चाहिए। जो उसे अच्छी लगे। जैसे एक शिकारी हिरन का शिकार करने से पहले मधुर आवाज में गाता है।
4. जो जिस कार्ये में कुशल हो उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए।
5. गरीब धन की इच्छा करता है, पशु बोलने योग्य होने की, आदमी स्वर्ग की इच्छा करते हैं और धार्मिक लोग मोक्ष की।
6. कभी किसी के सामने अपनी सफाई पेश मत करना क्योकि जिसे तुम पर विश्वास है उसे सफाई देने की जरूरत नहीं और जिसे तुम पर विश्वास नहीं वो मानेगा नहीं।
7. ज्ञान का उपयोग में न लाया जाये तो वह खो जाता है। इसलिए हमें अपने ज्ञान का उपयोग समाज के कल्याण और मानव जाति की भलाई में करना चाहिए ।
8. बचपन के अलावा उम्र के किसी भी स्तर पर यदि व्यक्ति अपने भोजन के लिए दुसरो पर निर्भर रहता है। तो वह अभागा होता है। हमें अपनी युवा अवस्था में बुढ़ापे के लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
9. एक राजा की ताकत उसकी शक्तिशाली भुजाओं में होती है। ब्राह्मण की ताकत उसके आध्यात्मिक ज्ञान में और एक औरत की ताक़त उसकी खूबसूरती, यौवन और मधुर वाणी में होती है।
10. जिसके मन में पाप का वास हो गया है वह बाहर से कितनी भी कोशिश कर ले खुद को साफ दिखाने का उसका मन वैसा ही रहता है। जैसे बर्तन में रखी शराब आग में झुलसने के बाद भी पवित्र नहीं होती।
11. जिस स्थान पर ज्ञानी और विद्वान् लोग रहते है। उस स्थान पर घर बनाना सुखद होता है। ऐसे लोगो के साथ से आचरण सही रहता है। और बच्चो की परवरिश के लिए सही माहौल मिलता है।
12. जो बीत गया, सो बीत गया। यदि हमसे कोई गलत काम हो गया है तो उसकी चिंता न करते हुए वर्तमान को सुधारकर भविष्य को संवारना चाहिए।
1. एक परिवार को बचाने के लिए एक मनुष्य, एक गांव को बचने के लिए एक परिवार तथा संपूर्ण राज्य को बचाने के लिए एक गांव का बहिष्कार करना पड़े तो इसमें कोई गलत बात नहीं है।
2. कर्ज दुश्मन और बीमारी को हमेशा के लिए ख़त्म कर देना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता उसका जीवन सदैव के लिए नर्क बन जाता है।
3. अति रूपवती होने के कारण देवी सीता का अपहरण हुआ था । अति गर्व के कारण रावण मारा गया । अति दान शील होने के कारण राजा बलि को अपना राजपाट त्यागना पड़ा था । इन सबसे शिक्षा लेकर अति का त्याग करना चाहिए।
4. कभी भी किसी से अपने धन की हानि के बारे में नहीं कहना चाहिए । अगर आपका व्यापर में घाटा हो रहा है । या किसी और कारण से आपको धन का नुकसान हुआ तो आप किसी से भी इसका जिक्र न करे इस बात को अपने तक ही सिमित रखे । क्योकि आप किसी को इस बारे में बताएंगे तो वह आपकी मदद के लिए नहीं आएंगे बल्कि झूठी तसल्ली ही देंगे, और आपसे दूर हो जाएंगे इनके अनुसार समाज में गरीब लोगो को इज्जत नहीं मिलती है।
5. अपनी निजी समस्याओं को किसी और से सांझा नहीं करना चाहिए, इससे लोग आपकी पीठ पीछे आपके ऊपर हँसेगे । क्योंकि किसी को भी आपकी समस्या से कोई लेना देना नहीं होता है । आपका दुःख दुसरो को सुख का अनुभव देता है।
6. एक पुरुष को अपनी पत्नी के चरित्र के बारे में किसी से नहीं कहना चाहिए । आख़िरकार सबसे बुद्धिमान व्यक्ति वही होता है जो अपनी पत्नी से जुडी हुई कोई बात किसी से नहीं कहता है । जो व्यक्ति ज्यादा बातूनी होता है और अपनी सभी निजी बाते किसी और से कहता है उसे बाद में गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते है।
7. एक मनुष्य को हमेशा इस बात को रहस्य रखना चाहिए कि उसकी बेइज्जती उससे किसी छोटे आदमी ने की है । अगर इस घटना को आप लोगो से साँझा करते है तो आपका मजाक बन सकता है । इससे आपकी गरीमा को ठेस पहुँच सकती है और आपके अहंकार को चोट लग सकती है, जिससे आपका आत्मविश्वाश डगमगा सकता है।
8. कुछ लोग हालत बदलने का प्रयास नहीं करते. जीवन जैसे चल रहा है, बस जीते चले जाते है. पर जो प्रगति करना चाहते है, उपर उठना चाहते है – वे अपना सब कुछ दांव पर लगाने से नहीं डरते. संभावना है कि वे हार जाएं, कुछ न कर पाए लेकिन यह जो कुछ कर दिखाने का प्रयास है – यही उन्हें औरो से अलग बनता है।
9. अधिक लाड प्यार करने से बच्चों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते है। इसलिए यदि वे कोई गलत काम करते है तो उसे नजरअंदाज करके लाड प्यार करना उचित नहीं है । बच्चो को डांटना भी आवश्यक है।
10. जिस प्रकार पत्नी के वियोग का दुःख, अपने भाई – बंधुओं से प्राप्त अपमान का दुःख असहनीय होता है, उसी प्रकार कर्ज से दबा व्यक्ति भी हर समय दुखी रहता है। दुष्ट राजा की सेवा में रहने वाला नौकर हर समय दुखी रहता है। निर्धनता का अभिशाप भी मनुष्य कभी भुला नहीं पाता। इनसे व्यक्ति की आत्मा अंदर ही अंदर जलती रहती है।
1. सर्प का विष दांतो में, मक्खी का विष उसके मस्तक में, बिच्छू का विष उसकी पूंछ में होता है । लेकिन दुष्ट व्यक्ति का तो समूचा शरीर ही विष वृक्ष होता है। अर्थात उसके नख – शिख में विष ही विष भरा होता है । इसलिए दुष्ट व्यक्ति का कभी संग नहीं करना चाहिए ।
2. अगर आप खाली बैठे है, तो जरा सोचिये आप क्या खो रहे है, आप खाली बैठकर अपना कीमती समय खो देते है, यह वह समय होता है जो कभी भी वापिस नहीं आता है, इसलिए अपने समय का उपयोग करना चाहिए ।
3. जीवन में दो ही नियम रखना, मित्र सुख में हो आमंत्रण के बिना जाना नहीं, मित्र दुःख में हो तो आमंत्रण का इंतजार करना नहीं ।
4. किसी भी व्यक्ति की वर्तमान स्थिति देखकर उसके भविष्य का मज़ाक मत उड़ाओ, क्योकि समय में इतनी ताकत है की वो भी एक कोयले को हीरे में बदल देती है।
5. साथ रहकर जो छल करे उससे बड़ा कोई शत्रु नहीं हो सकता और जो हमारे मुँह पर हमारी बुराइया बता दे उससे बड़ा कोई मित्र नहीं हो सकता ।
6.किसी के साथ अपने रहस्य साझा न करे। अगर तुम खुद अपने रहस्य छुपा नहीं सकते तो कैसे उम्मीद करते हो की कोई दूसरा उस रहस्य को छुपाएगा । यही तुम्हे बर्बाद करता है ।
7. खुद पर भरोसा करना सीखो क्योकि लोग आपको सलाह दे सकते है । बाकि कोशिश आप को खुद करनी होगी ।
8. सुबह की चाय और बड़ो की राय समय समय पर लेते रहना चाहिए । पानी के बिना, नदी बेकार है अतिथि के बिना, आँगन बेकार है । प्रेम न हो तो, सगे सम्बन्धी बेकार है । पैसा न हो तो, पॉकेट बेकार है । जीवन में गुरु न हो तो जीवन बेकार है । इसलिए जीवन में गुरु जरूरी है गरूर नहीं ।
9. मूर्खो से वाद – विवाद नहीं करना चाहिए , क्योंकि इससे केवल आप अपना ही समय नष्ट करेंगे
10. अपनी झोपडी में राज करना दुसरो के महल में गुलामी करने से बेहतर है
11. मुर्ख शिष्य को पढ़ाने पर, दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर तथा दुःखियो – रोगियों के बीच में रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दुःखी हो ही जाता है ।
12. कुए में उतरने वाली बाल्टी यदि झुकती है तो, भर कर बाहर आती है । जीवन का भी यही गणित है जो झुकता है वह प्राप्त करता है । दादागिरी तो हम मरने के बाद भी करेंगे लोग पैदल चलेंगे और हम कंधो पर ।
1. साधुजन के दर्शन से पुण्य प्राप्त होता है । साधु तीर्थो के समान होते है । तीर्थो का फल तो कुछ समय बाद मिलता है, किन्तु साधु समागम तुरंत फल देता है ।
2. गुणों से ही मनुष्य बड़ा बनता है, न कि किसी ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से । राजमहल के शीर्ष पर बैठ जाने भी कोआ गरुड़ नहीं बनता ।
3. दुष्ट व्यक्ति दूसरे की उन्नति को देखकर जलता है । वह स्वयं उन्नति नहीं कर सकता, इसलिए निन्दा करने लगता है ।
4. दुष्ट और सांप में सांप अच्छा है क्योंकि सांप तो एक ही बार डसता है किन्तु दुष्ट तो पग पग पर डसता रहता है ।
5. प्राप्त धन, भोजन और अपनी स्त्री में ही संतोष करना चाहिए लेकिन ज्ञानार्जन, तप और दान करने में कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए । इन्हे लगातार बढ़ाते रहना चाहिए ।
6. चिंतन सदैव अकेले ही किया जाए, ताकि विचार भंग होने की संभावना न रहे । पढ़ाई में दो, गायन में तीन, यात्रा में चार और खेती में पांच व्यक्तियों को उत्तम माना गया है । ऐसी प्रकार युद्ध में अधिक संख्याबल का महत्व बढ़ जाता है ।
7. विद्धान सर्वत्र सम्माननीय होता है । अपने उच्च गुणों के कारण देश – विदेश सभी जगह वह पूजनीय होता है अथार्त विदया ही सर्वोच्च धन है । विदया के कारण ही खाली हाथ होने पर भी विदेश में धनार्जन किया जा सकता है तथा मान सम्मान बढ़ाया जा सकता है । विदया के आभाव में उच्च कुल में जन्मा व्यक्ति भी सम्मान नहीं पाता ।
8. बुरे आदमी व अज्ञानी से बचने के दो उपाय है – या तो जूतों से मुख मर्दन करना अथवा दूर से ही उन्हें देखकर अपनी राह बदल लेना ।
9. इस संसार में अनगिनत वेदशास्त्र और बहुत सी विधाएं हैं परन्तु दूसरी और देखें तो समय भी बहुत कम है । इसलिए इन शास्त्रों के अर्थ को ही समझना चाहिए । जैसे हम दूध और पानी के मिश्रण में से केवल दूध को पी लेते है, पानी को छोड़ देते है ।
10. अपमानित होकर जीने से तो मर जाना अधिक अच्छा है, क्योकि मरते समय केवल क्षण भर ही तो दुःख होता है । लेकिन अपमानित होने पर तो हर रोज ही दुःख होता है ।
1. पानी की एक – एक बूंद गिरने से घड़ा भर जाता है । एक – एक बूंद मिलकर दरिया बनता है । धीरे – धीरे अभ्यास करने से हर विद्या आ जाती है । इसी प्रकार यदि आप थोड़ा – थोड़ा धन जमा करते रहे तो बहुत सा धन आपके पास जमा हो जाएगा ।
2. दरिद्रता उस समय तक दुःख नहीं देती जब तक कि आपके पास धैर्य है । गन्दा वस्त्र साफ रखने से बहुत सुन्दर लगने लगता है । बुरा खाना भी यदि गर्म हो तो खाने में स्वादिष्ट लगता है । असुन्दर नारी यदि गुणवान है तो भी प्रिय लगती है ।
3. गुणवान पुरुष यदि परमात्मा के समान हो तो भी अकेला रहने पर दुःख उठाता है । जैसे बहुत कीमती हीरा भी सोने में जड़ा जाने का इंतजार करता है । इसी प्रकार उस गुणवान पुरुष को भी किसी न किसी सहारे की तलाश रहती है ।
4. जो राजा अपने अच्छे सहयोगियों से मंत्रणा करता है, वह अपने हर कार्य में सफल हो जाता है । जिस व्यक्ति में कोई गुण नहीं, ज्ञान नहीं, ऐसे व्यक्ति से कभी भी कोई मंत्रणा न करें और न ही उसे राजनीति की गुप्त बात बताएं ।
5. जो लोग सकंट आने से पूर्व ही अपना बचाव कर लेते है और जिन्हें ठीक समय पर अपनी रक्षा का उपाय सूझ लेता है । ऐसे सब लोग सदा सुखों के झूले में झूलते हैं और खुश रहते है । परंतु जो लोग सदा यही सोचकर की जो भाग्य में लिखा हैं वही तो होगा भला कोई उसे बदल सकता है ? इसलिए जो होता है होने दो । ऐसा सोचने वाले लोग कभी सुख नहीं पा सकते, वे अपने जीवन को स्वयं नष्ट करते है। भाग्य की लकीरों को वे अपने कर्म और परिश्रम से बदलने का प्रयास क्यों नहीं करते ?
6. बन्धन और मोक्ष का कारण केवल हमारा यह मन ही होता है और यदि यही मन विषय विकारों में फंसकर जीवन के लक्ष्य से भटक जाए तो प्राणी पाप के मार्ग पर चलने लगते है । इसलिए यदि आप मोक्ष चाहते है अपने मन से विषय – विकारों को निकाल दें । विषय – विकार, काम, लोभ – मोह, अहंकार यह जिस मन में रहते है वह मन कभी शांत नहीं रह सकता ।
7. पति की इच्छा विरुद्ध पत्नी को कोई कार्य नहीं करना चाहिए। यहां तक की पति की इच्छा के विरुद्ध उपवास – व्रत आदि भी नहीं करने चाहिए, क्योंकि इस तरह पति की आयु कम होती है और पत्नी को घोर नरक का पाप मिलता है ।
8. लक्ष्मी चंचल है । प्राण , जीवन , शरीर सब कुछ चंचल और नाशवान है । संसार में केवल धर्म ही निश्चल है ।
9. दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन और व्यसन सभी मनुष्य के अपराध रूपी वृक्षों के फल है ।
10.धार्मिक कथाओं को सुनने पर, शमशान में तथा रोगियों को देखकर व्यक्ति की बुद्धि को वैराग्य हो जाता है, यदि ऐसा वैराग्य सदा बना रहे तो भला कौन संसार के इन झूठे बंदनों से मुक्त नहीं होगा ।
11. जैसे फल में गंध, तिलों में तेल, काष्ठ में अग्नि, दुग्ध में घी, गन्ने में गुड़ है, उसी तरह शरीर में परमात्मा है । इसे पहचाना चाहिए ।
12. ईश्वर न काष्ठ में है, न मिट्टी में , न मूर्ति में । वह केवल भावना में है । अतः भावना ही मुख्य है । कहा भी गया है —
जाकी रही भावना जैसी,
प्रभु मूरत तिन देखी तैसी ।
1. प्रजा के पाप का फल राजा, राजा के पाप का फल राजपुरोहित, शिष्य के पाप का फल गुरु और स्त्री के पाप का फल पति को भोगना पड़ता है ।
2. प्रतिदिन हमें कुछ न कुछ नया ग्रहण करना चाहिए, फिर चाहे वह एक श्लोक, उसका एक अंश अथवा एक शब्द मात्र ही क्यों न हो । एक – एक शब्द ही एक दिन विशाल समुंद्र का रूप धारण कर लेता है ।
3. दूसरों का सहारा लेने पर व्यक्ति का स्वयं का अस्तित्व गौण हो जाता है, जिस प्रकार सूर्योदय होने पर चन्द्रमा का प्रकाश चमक खो बैठता है । अतः महान वही है जो अपने बल पर खड़ा है ।
4. अतिथि का सत्कार न करने वाला, थके – हारे को आश्रय न देने वाला और दूसरे का हिस्सा हड़प करने वाला, ये सब लोग महापापी होते है ।
5. सीधेपन का लोग लाभ उठाते ही है । मनुष्य को इतना ज्यादा भी सरल – हदयी नहीं होना चाहिए कि हर कोई उसे ठग ले । जंगल में सीधे खड़े वृक्षों को ही काटा जाता है । टेड़े मेढे वृक्ष मजे से सीना ताने खड़े रहते है ।
6. बुरे मित्र का न होना ही अच्छा है, बुरे राजा से बिना राजा होना अच्छा, सदाचरण से रहित शिष्य से शिष्य का न होना अच्छा और आचरणहीन स्त्री से बिना स्त्री के रहना ही उचित कहा गया है ।
7. धन, दोस्त , नारी, सम्पति, राज्य । यह सब तो बार – बार मिल सकते है परन्तु यह मानव शरीर यदि एक बार चला जाए तो फिर वापिस नहीं मिल सकता ।
8. जिस मानव के गुणों की प्रशंसा दूसरे लोग उसकी पीठ के पीछे करें, भले ही वह गुणहीन क्यों न हो परन्तु उसे ही गुणवान माना जाएगा किन्तु यदि इन्द्र भी अपने मुंह से अपनी प्रशंसा करे तो उसे छोटापन माना जाएगा ।
9. पत्नी नाना प्रकार के दान, व्रत – उपवास, तीर्थ सेवन करके भी उतनी पवित्र नहीं होती जितनी पति सेवा करने से होती है ।
10. जिस व्यक्ति की पत्नी सदाचारिणी हो, धन भी भरपूर हो, पुत्र गुणवान हों, प्रपौत्र भी हो तो उसके लिए यह धरती ही स्वर्ग है । क्योंकि स्वर्ग में भी इससे बढ़कर तो कुछ और हो ही नहीं सकता ।