कलयुग का विनाश
1.कलयुग को इस संसार के विनाश का युग माना जाता है |चाणक्य जी के विचारो के अनुसार दो हजार पांच सौ वर्ष बीत जाने पर ग्राम देवता , ग्राम छोड़
देते है , अथार्त ग्रामवासियों का धर्म -कर्म छुट जाता है |कलयुग के अंत कालमे गंगा सुख जाती है और दस वर्ष बीत जाने पर स्वयं विष्णु भगवान पृथ्वी
छोड़ देते है यह सब चिन्ह इस बात की प्रतीक होते है कि अब महाप्रलय आने वाली है | महाप्रलय संसार का नाश करती है |उस समय सारा संसार मिट
जाता है |हर चीज का विनाश हो जाता है |यह होता है कलयुग का अंत |कलयुग के अंत पर नये संसार का निर्माण होता है |यह कर्म न जाने कब से चला
आ रहा है |
तीर्थ स्थान
2.तीर्थ यात्रा ,पूजा एवम तीर्थ स्थान | यह सब मन की ख़ुशी के लिए होते है | तीर्थो पर जाना केवल अपने पापो का प्रायिश्च्त कर सकते है |
यही धारणा लेकर तीर्थ यात्रा करते है |क्या आप समझते है |ऐसा करने से मनुष्य के पापो का बोझ हल्का हो जाता है ? नही | जिस तरह शराब का पात्र
जल दिए जाने पर भी शुद्ध नही माना जाता , वेसे ही तीर्थ स्थान पे जाकर ,वहाँ स्नान करने से कभी पाप नही धुलते |