1. जो व्यक्ति बिना किसी बात के दुखी रहता है तो उससे भी लोगों को दूर रहना चाहिए। चाणक्य का कहना था कि कुछ लोग भगवान द्वारा बहुत कुछ दिए जाने के बाद भी हमेशा विलाप करते रहते हैं अपना दुख प्रकट करते रहते हैं, तो ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए।
2. चाहे स्त्री हो या पुरुष अगर वह मूर्ख हो तो उसे व्यर्थ की सलाह नहीं देनी चाहिए। क्योंकि उनका मानना था कि ऐसा करना बिल्कुल व्यर्थ होता है। उन्होंने ऐसा इस आधार पर कहा था कि बुद्धिहीन व्यक्ति ज्ञान की बातों में भी अपने कुतर्कों को ले आते हैं जिससे ज्ञानी लोगों का कीमती वक्त बरबाद हो सकता है। इसलिए ऐसे लोगों से दूर रहें।
3. आचार्य चाणक्य का मत था कि जिस प्रकार के किसी ब्राह्मण के पास ज्ञान की शक्ति होती है उसी प्रकार के पास किसी महिला का सौंदर्य और यौवन ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति होती है।
4. चाणक्य ने उचित सलाह देते हुए कहा कि हमें किसी भी राजा या उसके प्रशासन से बैर नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से हमारे प्राण संकट में पड़ सकते हैं। क्योंकि राजा का विरोध करने का सीधा मतलब होता है कि आप सीधे सीधे मौत को दावत दे रहे हैं, इसलिए ऐसा करने से हमें बचना चाहिए।
5. कोई व्यक्ति अगर खुद की आत्मा से द्वेष करता है। मसलन वो अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखता है, या उसके प्रति सचेत नहीं रहता है, हमेशा खान-पान को लेकर असावधानी बरतता है तो वो हमेशा मृत्यु के निकट रहता है। शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य ही खुद का सबसे बड़ा मित्र और शत्रु होता है इसलिए हमें हमेशा अपने शरीर का ख्याल रखना चाहिए।
6. वह क्या है जो कवि कल्पना में नहीं आ सकता. वह कौनसी बात है जिसे करने में औरत सक्षम नहीं है. ऐसी कौनसी बकवास है जो दारू पिया हुआ आदमी नहीं करता. ऐसा क्या है जो कौवा नहीं खाता।
7. किसी व्यक्ति का मेहनत से कमाया हुआ धन उसके दुश्मनों के हाथ में चले जाए तो वह बर्बाद हो जाता है। क्योंकि उसका दुश्मन वह धन उसी के विरूद्ध उपयोग करेगा। जिससे कि वह पराजित होगा और अपनी व अपने परिवार की जीविका ठीक ढंग से नहीं चला पाएगा।
8. बिना सोचे समझे खर्च करने वाला, झगड़े पर आमदा आदमी, अपनी पत्नी को दुर्लक्षित करने वाला, जो अपने आचरण पर ध्यान नहीं देता है. ये सब लोग जल्दी ही बर्बाद हो जायेंगे।
9. हम उसके लिए ना पछताए जो बीत गया. हम भविष्य की चिंता भी ना करे. विवेक बुद्धि रखने वाले लोग केवल वर्तमान में जीते है।
10. जो भविष्य के लिए तैयार है और जो किसी भी परिस्थिति को चतुराई से निपटता है. ये दोनों व्यक्ति सुखी है. लेकिन जो आदमी सिर्फ नसीब के सहारे चलता है वह बर्बाद होता है।
11. नीच वर्ग के लोग दौलत चाहते है, मध्यम वर्ग के दौलत और इज्जत, लेकिन उच्च वर्ग के लोग सम्मान चाहते है क्यों की सम्मान ही उच्च लोगो की असली दौलत है।
12. चाणक्य के साथ साथ ऐसा हमारे घर के बड़े भी कहा करते हैं कि हमें अपने से बलवान व्यक्ति से नहीं टकराना चाहिए, फिर वो चाहे पैसे से बलवान हो या फिर शरीर से। हमें हमेशा अपने से बलवान व्यक्ति से मधुर संबंध बनाए रखने चाहिए , क्योंकि ऐसे व्यक्ति से दुश्मनी मोल लेने का सीधा मतलब होता है मौत को न्योता देना।
1. शत्रु का सबसे घातक हथियार होता है “उकसाना ” । शत्रु ऐसा प्रयास करता है की आपको उकसाया जाये जिससे आप को क्रोध आए। क्रोध में शक्ति और विवेक आधी हो जाती है और शत्रु आपकी कमजोरी का फायदा उठाता है। इसलिए शत्रु आपको उकसाने का प्रयास करे तो कछुए की भांति क्रोध को समेटकर अपने अंदर रख लो और अपनी पूरी तैयारी के साथ वार करो। इसलिए कभी भी शत्रु के उकसाने पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। लेकिन शत्रु को क्षमा भी नहीं करना चाहिए। क्षमा करने से शत्रु का मनोबल बढ़ता है।
2. किसी मूर्ख व्यक्ति के लिए किताबें उतनी ही उपयोगी हैं! जितना कि एक अंधे व्यक्ति के लिए आईना।
3. भले ही आप में बहुत से गुण हो। आपका व्यवहार अच्छा हो, आप दयावान हो। आप समाजसेवी हो या आप पैसे वाले हो। आपकी समाज में बड़ी इज्जत है। लेकिन आपके अंदर एक छोटा सा भी दोष होगा। तो वह आपका जीवन बर्बाद कर देगा।
4. वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है।
5. संस्कारी परिवार की कन्या यदि सुंदर ना हो तो भी उससे विवाह कर लेना चाहिए। विवाह के बाद स्त्री के गुण ही परिवार को आगे बढ़ाते है। संस्कारी कन्या के आचार विचार शुद्ध होते है। ऐसी स्त्री एक श्रेष्ठ परिवार बनाती है।
6. आग में आग नहीं डालनी चाहिए। अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।
7. जब कार्यों की अधिकता हो, तब उस कार्य को पहले करें, जिससे अधिक फल प्राप्त होता है।
8. बहुत से परिवारों में झगड़े होते है और ये होना भी आम बात है पर इस बात को कभी भी किसी बहार वाले को नहीं बताना चाहिए। चाणक्य नीति के अनुसार अगर आप बहार वाले को ये बातें बताते हैं तो ऐसा करने पर समाज में परिवार की प्रतिष्ठा कम होती है और साथ ही साथ परिवार का अहित चाहने वाले लोग हमारे आपसी झगड़े से लाभ उठाते है।
9. परिश्रम वह चाबी है, जो किस्मत का दरवाजा खोल देती है।
10. समझदार आदमी वही है जो कमाई और खर्चे के तालमेल को समझ सके। जो लोग आय से ज्यादा खर्च करते है, वो हमेशा परेशानियो में रहते है। इसलिए धन सम्बन्धी सुख पाने के लिए कभी भी आय से ज्यादा खर्च न करे।
11. जो लोग मिली हुई चीज को छोड़कर उस चीज के पीछे भागते है जिसके मिलने की कोई आशा ही न हो , ऐसे लोग मिली हुई चीज को भी खो देते है।
12. औरत को सदा गृह कार्य में लगे रहना चाहिए। इसलिए उसे गृहणी कहा गया है। वही औरत आदर और सत्कार के योग्य होती है, जो अपने घर में रहकर पति की सेवा करे। बच्चों का पालन पोषण करती है।
1. सर्प का विष दांतो में, मक्खी का विष उसके मस्तक में, बिच्छू का विष उसकी पूंछ में होता है । लेकिन दुष्ट व्यक्ति का तो समूचा शरीर ही विष वृक्ष होता है। अर्थात उसके नख – शिख में विष ही विष भरा होता है । इसलिए दुष्ट व्यक्ति का कभी संग नहीं करना चाहिए ।
2. अगर आप खाली बैठे है, तो जरा सोचिये आप क्या खो रहे है, आप खाली बैठकर अपना कीमती समय खो देते है, यह वह समय होता है जो कभी भी वापिस नहीं आता है, इसलिए अपने समय का उपयोग करना चाहिए ।
3. जीवन में दो ही नियम रखना, मित्र सुख में हो आमंत्रण के बिना जाना नहीं, मित्र दुःख में हो तो आमंत्रण का इंतजार करना नहीं ।
4. किसी भी व्यक्ति की वर्तमान स्थिति देखकर उसके भविष्य का मज़ाक मत उड़ाओ, क्योकि समय में इतनी ताकत है की वो भी एक कोयले को हीरे में बदल देती है।
5. साथ रहकर जो छल करे उससे बड़ा कोई शत्रु नहीं हो सकता और जो हमारे मुँह पर हमारी बुराइया बता दे उससे बड़ा कोई मित्र नहीं हो सकता ।
6.किसी के साथ अपने रहस्य साझा न करे। अगर तुम खुद अपने रहस्य छुपा नहीं सकते तो कैसे उम्मीद करते हो की कोई दूसरा उस रहस्य को छुपाएगा । यही तुम्हे बर्बाद करता है ।
7. खुद पर भरोसा करना सीखो क्योकि लोग आपको सलाह दे सकते है । बाकि कोशिश आप को खुद करनी होगी ।
8. सुबह की चाय और बड़ो की राय समय समय पर लेते रहना चाहिए । पानी के बिना, नदी बेकार है अतिथि के बिना, आँगन बेकार है । प्रेम न हो तो, सगे सम्बन्धी बेकार है । पैसा न हो तो, पॉकेट बेकार है । जीवन में गुरु न हो तो जीवन बेकार है । इसलिए जीवन में गुरु जरूरी है गरूर नहीं ।
9. मूर्खो से वाद – विवाद नहीं करना चाहिए , क्योंकि इससे केवल आप अपना ही समय नष्ट करेंगे
10. अपनी झोपडी में राज करना दुसरो के महल में गुलामी करने से बेहतर है
11. मुर्ख शिष्य को पढ़ाने पर, दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर तथा दुःखियो – रोगियों के बीच में रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दुःखी हो ही जाता है ।
12. कुए में उतरने वाली बाल्टी यदि झुकती है तो, भर कर बाहर आती है । जीवन का भी यही गणित है जो झुकता है वह प्राप्त करता है । दादागिरी तो हम मरने के बाद भी करेंगे लोग पैदल चलेंगे और हम कंधो पर ।
1.ज्ञान से बढकर दूसरा गुरु नही ,कामवासना के समान दूसरा रोग नही ,क्रोध के समान आग नही ,और अज्ञानता के
दूसरा शत्रु नही |
2.सिह से हमे सीखना चाहिए कि काम छोटा हो या बड़ा पूरी शक्ति से करे |जिस प्रकार सिहं शिकार छोटा हो या बड़ा
वह अपनी पूरी शक्ति से झपटता है |
3.ब्राह्मण ,गुरु अग्नि ,कुंवारी कन्या ,बालक व्रद्वो को पैरो से नही छुना चाहिए | ये सभी आदरणीय है | हमे इन्हे आदर
सम्मान देना चाहिए |
4.अपनी संतानों को जो माता पिता उचित शिक्षा नही दिलवाते , वे उनके शत्रु है | समय का चक्र किसी के रोके नही रुकता
चलता रहता है |अत: समय को पहचान कर तदनुसार कर्म करना चाहिए |
5.गाय चाहे जो भी खाले ले दूध ही देगी | इसी प्रकार विद्वान् कैसा भी आचरण करे , वह निश्चित ही अनुकरणीय होगा |
परन्तु यह तथ्य केवल समझदार ही समझ सकते है |
6.होनी को कोई नही टाल सकता | होनी होकर ही रहती है | होनी के वक्त वैसा ही अनुकूल वातावरण बन जाता है ,हमारी
बुधि भी तदनुकूल ही कार्य करने ल्हती है |
7.बिना मंत्री का राजा ,नदी के किनारे व्रक्ष दुसरे के घर जा कर रहने वाली स्त्री -ये सभी शीघ्र नष्ट हो जाते है अर्थात बिना
मंत्री का राजा कूटनीति के अभाव मे राजपाट से हाथ धो बैठता है |नदी के किनारे सिथत विशाल व्रक्ष भी जल के प्रभाव से
कभी भी भ सकता है |और दुसरे की पत्नी बन जाने पर स्त्री कभी भी ठुकराई जा सकती है |
8.जो व्यक्ति सभी प्राणियों के प्रति समान भाव रखता है , दुसरो के धन को मिटटी के समान समझता है |और पर स्त्री को माता |
वही सच्चा विद्वान् और ब्राहाण है |
9.गधा बहुत संतोषी जीव है | थकने पर भी वह बोझ ढोता रहता है | सर्दी -गर्मी की उसे प्रवाह नही रहती ,संतोष भाव से जो मिल
जाये ,उसी मे गुजर करना ,ये बाते गधे से सीखनी चाहिए |
10.अन्न से बढकर कोई दान नही होता | दाद्शी की तिथि सर्वोपरी है | गायत्री मन्त्र सर्वश्रेष्ठ है | और माता पिता से श्रेष्ठ कोई नही |