“यह कौन है ? काला -कलूटा भूत जैसा कुरूप ! जिसकी शक्ल देखने से ही मन खराब हो जाता हैं |कैसे आया यह हमारे राज दरबार मे ? कैसे बैठ यह मनहूस हमारे सामने ? ” राजा नन्द क्रोध से लाल पीला होता हुआ चीख उठा |उसकी आँखों से जैसे अंगारे बरस रहे थे |क्रोध के मारे उसके हाथ -पांव कांप रहे थे ऐसा प्रतीत होता था मानो राजा नन्द सामने बैठे उस काले आदमी को मृत्युदंड देगा | लेकिन न जाने कौन सी मजबूरी थी जिसके कारण वह अभी तक उसे मृत्युदंड न दे सका था | “महाराज ! आप को थूक दिजिय | यह तो हमारे महापण्डित विष्णुगुप्त शर्मा हैं |” महामंत्री ने राजा का गुस्सा ठंडा करने का प्रयास करते हुए नम्रतापूर्वक कहा | “नही …नही …ऐसे भयंकर चेहरे वाला ,बहुत की नस्ल का आदमी कभी भी महापंडित नही हो सकता |इसे देखते ही मेरा मन खराब हो रहा हैं | यह ब्राहमण हैं अथवा कोई चंडाल ? निकाल दो इसे हमारे दरबार से |दूर कर दो इसे मेरी नजरो से |कही ऐसा न हो कि मुझे इसका वध करने का आदेश देना पड़े | सभा मे बैठे पण्डित विष्णुगुप्त के मन मे यह अपमानजनक शब्द सुनकर क्या बीती होगी ? एक तो ब्राहमण और उस पर इतना बड़ा विद्वान् | इतने पर भी वह त्यागी और तपस्वी | ब्राहमण का क्रोध तो दुनिया भर मे प्रसिद हैं | मगर त्यागी , तपस्वी और विद्वान् का अपमान जब कोई मुर्ख करता हैं | तो ब्राहमण की सहन शक्ति भी दम तोड़ देती हैं | ब्राहमण के पास कोई हथियार नही होता | मगर उसका प्रचंड क्रोध जब प्रकट होता हैं तो बडो -बडो का भी नाश कर देता हैं |उसका शाप कई कुलो को नाश कर देता हैं |उसकी बुदी की शक्ति से बड़े -बड़े बहादुर राजा भी धुल चाटने पर मजबूर हो जाते हैं | ऐसे ही एक ब्राहमण का नाम था पण्डित विष्णुगुप्त शर्मा अथार्त चाणक्य | उसने राजा नन्द अपमानजनक शब्द सुनकर यह प्रतिज्ञा की थी —-“मै इस राजा का नाश करके रहूँगा |जब तक इस अपमान का बदला न ले लू ,तब तक मै चैन से नही बैठुगा | जब तक इस राजा की मुर्खता का सबक इसको न सिखा दूंगा ,तब तक सिर के बाल नही संवारूँगा “
‘पंडित ‘ विष्णुगुप्त चाणक्य आज पुरे विश्व मे चाणक्य पंडित के नाम से प्रसिद्ध हैं |उसकी की प्रसिदी का सबसे बड़ा कारण उसकी यह रचना हैं |
जिसे ‘चाणक्य नीति ‘ के नाम से संस्क्रत साहित्य से रूपांतरित करके पाठको के लिए प्रस्तुत किया जा रहा हैं |
भारत की इस महान धरती पर रचित चाणक्य नीति की सबसे बड़ी विशेषता यही रही हैं कि यह विश्व की अनेक जुबानो मे अनुवादित होकर
अपनी लोकप्रियता के झंडे गाड चुकी हैं | यदि इसे नीति का सागर कहा जाये तो कोई अतिश्योकित नही होगी
इस नीति की सफलता का कारण क्या हैं ? यह रहस्य जानने के लिए अनेक पाठकगण व्याकुल होगे |
जिस नीति की शक्ति से एक साधारण सैनिक भारत का सम्राट बन जाये उस नीति को सफल ही माना जायेगा |
मौर्य वंश का इतिहास भारत वंश के इतिहास मे एक विशेष स्थान रखता हैं |इसी वंश का राजा था —‘चन्द्रगुप्त मौर्य ‘ जिसे चाणक्य ने अपनी
शिक्षा और नीतियों के ज्ञान से भारत का सम्राट बना दिया |
चाणक्य के जन्म के बारे मे हमारा इतिहास कोई विशेष सहायता नही कर पाता |मगर जैसा कि इतिहास मे लिखा गया हैं |कि महापंडित विष्णुगुप्त
‘तक्षिशला विश्वविधालय ‘मे अर्थशास्त्र का आचार्य था |उस विश्वविधालय मे ही उसकी शिक्षा -दीक्षा पूरी हुई थी |यह 325 ईसा पूर्व की बात हैं |उस समय
भारत पर सम्राट चन्द्रगुप्त का शासन था |वही समय चाणक्य का भी था |
चाणक्य का निवास स्थान शहर के बाहर पर्णकुटी मे था |यह देखकर चीन के एतिहासिक यात्री फाहान को बड़ा आश्चर्य हुआ |उसने चाणक्य से
प्रश्न किया कि इतने बड़े देश का प्रधान मंत्री ऐसी झोंपड़ी मे रहता हैं ? उतर मे चाणक्य ने कहा जिस देश का प्रधान मंत्री साधारण कुटिया मे रहता हो , वहाँ
के निवासी भव्य भवनों मे निवास किया करते हैं और जिस देश का प्रधान मंत्री ऊँचे महलो मे रहता हो ,वहाँ की आम जनता तो झोंपडियो मे ही रहती हैं |
इस प्रकार महापंडित चाणक्य ने आज के शासको के मुंह पर हजारो वर्ष पूर्व ही करारा तमाचा मारा था |
वह देश महान क्यों न होगा जिस का प्रधान मंत्री इतना ईमानदार हो | काश ! आज के नेतागण चाणक्य से कुछ सीख सके |यही सोचकर इस महान ग्रंथ
को सरल हिन्दी रूप मे प्रस्तुत किया जा रहा हैं ताकि इस देश के आम लोगभी इस ज्ञान से लाभ उठा सके |
विदान पंडित का सारा जीवन संघर्शो से भरा पड़ा था |इसलिए अलग से जीवन परिचय भी लिखा हैं |जो पाठको को पहली बार पढने को मिलेगा |
वैसे चाणक्य का जन्म स्थान उसकी शिक्षा ‘तक्षिशला विश्वविधालय मे होने के कारण पंजाब ही हैं |यह शहर आजकल बंटवारे के पश्यात पाकिस्तान मे हैं |
जेह्लुम नदी के किनारे बसे तक्षिशला शहर मे इतिहास के खंडहर ही देखे जा सकते हैं |आज भी वहाँ चाणक्य की यादे उसकी नीति के रूप मे हमे नजर आती हैं
चाणक्य अपने साहित्य के कारण अम्र हैं और जब तक यह संसार हैं तब तक लोग चाणक्य को नही भूलेगे |
तप
1.तप भक्ति पूजा केवल एकान्त मे ही करनी चाहिय |विधार्थियो को इकट्ठे बैठ कर पढना चाहिय |गीत गाने वाले मिलकर गाये तो गाना अच्छा लगता है |
इकट्ठे मिलकर सफर करने मे थकावट नही होती |मिलकर खेती करने से फसल अच्छी होती है |बहुत सारे लोग यदि मिलकर शत्रु से युद करे तो विजय उन्ही
की होगी | राजा की आज्ञा ,कन्यादान ,पण्डित के बोल |राजा एक बार हुक्म देने के पश्यात उसका पालन चाहता है |उसके आदेशो का पालन न करने वाले को
सजा मिलती है |कन्यादान केवल एक ही बार होता है |इसके पश्यात लडकी पराई हो जाती है | जिस घर मे बच्चे न हो वह घर सुना हो लगता है | पति -पत्नी भी
उदास रहते है |
भाग्य
2.आयु ,कर्म धन ,विध्या और मृत्यु यह पांचो बाते उसी समय प्राणी के भाग्य मे लिख दी जाती है | गन्दे कपड़ो मे रहना वाला |घटिया और नीच लोगो
की सेवा करने वाला | घटिया बासी भोजन खाने वाला | लड़ाकू पत्नी जो पति से हर समय झगड़ा करती रहे | विधवा ओरत |यह सब चीजे पुरुष के लिए
बहुत हानिकारक होती है | इनसे सदा बच कर रहे | यह संसार दू;खो का घर है | हर प्राणी दू;खो मे डूबा रहता है |शान्ति के लिए साधू ,सन्तान , पत्नी की
शरण मे जाना चाहिय |थका हारा इन्सान इनके पास जाकर ही अपने दू ;ख दूर कर सकता है |
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अकेलापन
1जिसका कोई भाई न हो वह प्राणी अकेला दुखी रहता हैं | एकांत उसे सांप की भांति कटता हैं |
मूर्ख का दिल और दिमाग शून्य होता हैं | गरीब बेचारे की तो हर चीज शून्य होती हैं | गरीब होना ही पाप हैं और धनवान होना
जीवन का सुनहरा पन हैं |
उदास
2.जिस घर बच्चे न हो वह घर सुना लगता हैं | पति पत्नी भी उदास रहते हैं |
निर्धन
3.निर्धन सदा धन की तलाश में भटकते हैं ,उनके मन में सदा अमीर बनने की इच्छा रहती हैं |
इस संसार का हर प्राणी स्वर्ग चाहता हैं ,वह सदा स्वर्ग के सपने देखता हैं | इसे हम इच्छा कहते हैं | यह सारा संसार इच्छाओ का दास बन कर रह गया हैं |
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‘पंडित’ विष्णुगुप्त चाणक्य आज पूरे विश्व में चाणक्य पंडित के नाम से प्रसिद्ध है |उसकी प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण उसकी यह रचना है | जिसे ‘चाणक्य नीति’ के नाम से संस्कृत साहित्य से रूपांतरित करके पाठको के लिये प्रस्तुत किया जा रहा है | More…
” यह कोन है ? काला कलूटा भूत जैसा कुरूप ! जिसकी शकल देखने से ही मन ख़राब होता है |
कैसे आया यह हमारे राज दरबार मर ? कैसे बैठ गया यह मनहूस हमारे सामने ?” More…
एक बार की बात है , मगध साम्राज्य के सेनापति किसी व्यक्तिगत काम से चाणक्य से मिलने पाटलिपुत्र पहुंचे । शाम ढल चुकी थी , चाणक्य गंगा तट पर अपनी कुटिया में, दीपक के प्रकाश में कुछ लिख रहे थे। More…
चाणक्य एक जंगल में झोपड़ी बनाकर रहते थे। वहां अनेक लोग उनसे परामर्श और ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे। जिस जंगल में वह रहते थे, वह पत्थरों और कंटीली झाडि़यों से भरा था। चूंकि उस समय प्राय: नंगे पैर रहने का ही चलन था, इसलिए उनके निवास तक पहुंचने में लोगों को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता था। वहां पहुंचते-पहुंचते लोगों के पांव लहूलुहान हो जाते थे।
एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है?
सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो.वो मिले. फिर सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा.और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक More…