Chanakya Niti,Inspirational,Motivational,story,Vichar

chanakya niti on Insan

25 Jan , 2017  

chanaky

बच्चो से लाड -प्यार

1.पांच वर्ष  तक अपने  बेटे  को  लाड – प्यार  करे | फिर दस वर्ष  की आयु   तक  ताड़ना  करे और  जब पुत्र  सोलह  वर्ष  का हो जाये  तो  उसको  अपना मित्र  मानना चाहिए |

बुजुर्गो की सेवा

2 वृद्ध की  सेवा  सबसे  बड़ा  धर्म  माना गयाको    हैं | ज्ञानी  पुरुषो के साथ  रहकर  मनुष्यों  को  क्या  करना चाहिए , क्या  नही करना  चाहिए, यही तो ज्ञान  होता  हैं |

इन्सान  और  देवता

 

 3. दान  पुण्य की आदत , ब्राहमण  की  सेवा ,मीठे  बोल बोलना भगवान  की पूजा | जिस प्राणी में यह सब  गुण  हो  तो  वह देवता  का ही  रूप होता हैं | हर मनुष्य को चाहिए कि वह इन चारो गुणों को अपने पास रखे|

गुणवान

असंतुष्ट रहने वाला  कभी गुणवान  नही होता | क्योकि उसके पूजने वाले सन्तोष न होने के कारण उससे नफरत करने लगते हैं |

 

 

 

 

 

Motivational

Motivational Quotes

19 Apr , 2016  

Chanakya NIti

  •  जिसके पास धन नहीं है वो गरीब नहीं है, वह तो असल में रहीस है, यदि उसके पास विद्या है. लेकिन जिसके पास विद्या नहीं है वह तो सब प्रकार से निर्धन है More…

Motivational,Vichar

Mahatvpurn Baate

12 Apr , 2016  

Chanakya Niti

  •      शास्त्रों में पांच पिता बताए गए है —– जन्मदाता, विद्या देने वाला गुरु, भय से बचाने वाला, यज्ञोपवीत कराने वाला तथा अन्न देने वाला | इन सभी को पिता तुल्य समझ एक समान आदर व सम्मान करना चाहिए | More…

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Chanakya Vichar

6 Apr , 2016  

Chanakya Niti

  •    जिस प्रकार एक सूखे पेड़ को अगर आग लगा दी जाये तो वह पूरा जंगल जला देता है, उसी प्रकार एक पापी पुत्र पुरे परिवार को बर्वाद        कर   देता है.

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Chanakya Gyan

28 Mar , 2016  

chanakya niti

  • जो बीत गया, सो बीत गया। अपने हाथ से कोई गलत काम हो गया हो तो उसकी फिक्र छोड़ते हुए वर्तमान को सलीके से जीकर भविष्य को संवारना चाहिए।

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Dosti Mitrata Gyan by Chanakya

26 Mar , 2016  

Chanakya Niti Gyan

  • हर मित्रता के पीछे कुछ स्वार्थ जरूर छिपा होता है। दुनिया में ऐसी कोई दोस्ती नहीं जिसके पीछे लोगों के अपने हित न छिपे हों, यह कटु सत्य है, लेकिन यही सत्य है। और  जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो
  • और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है

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