1. साधुजन के दर्शन से पुण्य प्राप्त होता है । साधु तीर्थो के समान होते है । तीर्थो का फल तो कुछ समय बाद मिलता है, किन्तु साधु समागम तुरंत फल देता है ।
2. गुणों से ही मनुष्य बड़ा बनता है, न कि किसी ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से । राजमहल के शीर्ष पर बैठ जाने भी कोआ गरुड़ नहीं बनता ।
3. दुष्ट व्यक्ति दूसरे की उन्नति को देखकर जलता है । वह स्वयं उन्नति नहीं कर सकता, इसलिए निन्दा करने लगता है ।
4. दुष्ट और सांप में सांप अच्छा है क्योंकि सांप तो एक ही बार डसता है किन्तु दुष्ट तो पग पग पर डसता रहता है ।
5. प्राप्त धन, भोजन और अपनी स्त्री में ही संतोष करना चाहिए लेकिन ज्ञानार्जन, तप और दान करने में कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए । इन्हे लगातार बढ़ाते रहना चाहिए ।
6. चिंतन सदैव अकेले ही किया जाए, ताकि विचार भंग होने की संभावना न रहे । पढ़ाई में दो, गायन में तीन, यात्रा में चार और खेती में पांच व्यक्तियों को उत्तम माना गया है । ऐसी प्रकार युद्ध में अधिक संख्याबल का महत्व बढ़ जाता है ।
7. विद्धान सर्वत्र सम्माननीय होता है । अपने उच्च गुणों के कारण देश – विदेश सभी जगह वह पूजनीय होता है अथार्त विदया ही सर्वोच्च धन है । विदया के कारण ही खाली हाथ होने पर भी विदेश में धनार्जन किया जा सकता है तथा मान सम्मान बढ़ाया जा सकता है । विदया के आभाव में उच्च कुल में जन्मा व्यक्ति भी सम्मान नहीं पाता ।
8. बुरे आदमी व अज्ञानी से बचने के दो उपाय है – या तो जूतों से मुख मर्दन करना अथवा दूर से ही उन्हें देखकर अपनी राह बदल लेना ।
9. इस संसार में अनगिनत वेदशास्त्र और बहुत सी विधाएं हैं परन्तु दूसरी और देखें तो समय भी बहुत कम है । इसलिए इन शास्त्रों के अर्थ को ही समझना चाहिए । जैसे हम दूध और पानी के मिश्रण में से केवल दूध को पी लेते है, पानी को छोड़ देते है ।
10. अपमानित होकर जीने से तो मर जाना अधिक अच्छा है, क्योकि मरते समय केवल क्षण भर ही तो दुःख होता है । लेकिन अपमानित होने पर तो हर रोज ही दुःख होता है ।