Chanakya Niti

Success is Guaranteed by these 12 Policies of Chanakya

19 Mar , 2019  

1. पानी की एक – एक बूंद गिरने से घड़ा भर जाता है । एक – एक बूंद मिलकर दरिया बनता है । धीरे – धीरे  अभ्यास करने से हर विद्या आ जाती है । इसी प्रकार यदि आप थोड़ा – थोड़ा धन जमा करते रहे तो बहुत सा धन आपके पास जमा हो जाएगा ।

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2.  दरिद्रता उस समय तक दुःख नहीं देती जब तक कि आपके पास धैर्य है । गन्दा वस्त्र साफ रखने से बहुत सुन्दर लगने लगता है । बुरा खाना भी यदि गर्म हो तो खाने में स्वादिष्ट लगता है । असुन्दर नारी यदि गुणवान है तो भी प्रिय लगती है ।

3. गुणवान पुरुष यदि परमात्मा के समान हो तो भी अकेला रहने पर दुःख उठाता है । जैसे बहुत कीमती हीरा भी सोने में जड़ा जाने का इंतजार करता है । इसी प्रकार उस गुणवान पुरुष को भी किसी न किसी सहारे की तलाश रहती है ।

4. जो राजा अपने अच्छे सहयोगियों से मंत्रणा करता है, वह अपने हर कार्य में सफल हो जाता है । जिस व्यक्ति में कोई गुण नहीं, ज्ञान नहीं, ऐसे व्यक्ति से कभी भी कोई मंत्रणा न करें और न ही उसे राजनीति की गुप्त बात बताएं ।    

5. जो लोग सकंट आने से पूर्व ही अपना बचाव कर लेते है और जिन्हें ठीक समय पर अपनी रक्षा का उपाय सूझ लेता है । ऐसे सब लोग सदा सुखों के झूले में झूलते हैं और खुश रहते है । परंतु जो लोग सदा यही सोचकर की जो भाग्य में लिखा हैं वही तो होगा भला कोई उसे बदल सकता है ? इसलिए जो होता है होने दो । ऐसा सोचने वाले लोग कभी सुख नहीं पा सकते, वे अपने जीवन को स्वयं नष्ट करते है।  भाग्य की लकीरों को वे अपने कर्म और परिश्रम से बदलने का प्रयास क्यों नहीं करते ?

6. बन्धन और मोक्ष का कारण केवल हमारा यह मन ही होता है और यदि यही मन विषय विकारों में फंसकर  जीवन के लक्ष्य से भटक जाए तो प्राणी पाप के मार्ग पर चलने लगते है । इसलिए यदि आप मोक्ष चाहते है  अपने मन से विषय – विकारों को निकाल दें । विषय – विकार, काम, लोभ – मोह, अहंकार यह जिस मन में रहते है वह मन कभी शांत नहीं रह सकता ।

7. पति की इच्छा विरुद्ध पत्नी को कोई कार्य नहीं करना चाहिए।  यहां तक की पति की इच्छा के विरुद्ध उपवास – व्रत आदि भी नहीं करने चाहिए, क्योंकि इस तरह पति की आयु कम होती है और पत्नी को घोर नरक का पाप मिलता है ।  

8. लक्ष्मी चंचल  है । प्राण , जीवन , शरीर सब कुछ  चंचल और नाशवान है । संसार में केवल धर्म ही निश्चल है ।

9. दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन और व्यसन सभी मनुष्य के अपराध रूपी वृक्षों के फल है ।

10.धार्मिक कथाओं को सुनने पर, शमशान में तथा रोगियों को देखकर व्यक्ति की बुद्धि को वैराग्य हो जाता है, यदि ऐसा वैराग्य सदा बना रहे तो भला कौन संसार के इन झूठे बंदनों से मुक्त नहीं होगा ।

11. जैसे फल में गंध, तिलों में तेल, काष्ठ में अग्नि, दुग्ध में घी, गन्ने में गुड़ है, उसी तरह शरीर में परमात्मा है । इसे पहचाना चाहिए ।

12. ईश्वर न काष्ठ में है,  न मिट्टी में , न मूर्ति में । वह केवल भावना में है । अतः भावना ही मुख्य है । कहा भी गया है —

जाकी रही भावना जैसी,

प्रभु मूरत तिन देखी तैसी ।